द माउंटबेटन प्लान, 1947
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प्रस्तावना
किसी भी विषय पर लिखने के लिए हम अपने मन में विचारों को एक जगह
इकठ्ठा कर लेते हैं | इन विचारों के बारे में जानना अपने आप में ही एक अनोखा अनुभव
होता है | ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ जब मैंने इस लेख को लिखना शुरू किया था | यह
लेख भारतीय इतिहास की उस घटना का व्याख्यान करता है जिसने उस समय को लोगों के जीवन
पर एक बहुत ही गहरा प्रभाव छोड़ा था | चूँकि हिंदुस्तान के विभाजन की घटना एक
ऐतिहासिक घटना है और इतिहास के पन्नों में उसका विस्तृत वर्णन भी है इसलिए उसे एक
लेख के रूप में लिखना मुझे थोड़ा मुश्किल काम लगा | लेकिन इस विषय के प्रति जो
दिलचस्पी थी उसने कोई भी मुश्किल महसूस नहीं होने दी और यह लेख पूरा तैयार हो गया
| इस लेख में कुछ क्षेपक भी जोड़े गए हैं जिसको
पाठकगण अन्यथा नहीं समझेंगे, ऐसा मेरा मानना है | अब ज्यादा कुछ ना कहते हुए बस इतना बताना
चाहूँगा कि इस लेख में जिस वास्तविकता का वर्णन मौलिकता के साथ करने का प्रयत्न
किया गया है यदि वह प्रयत्न सफल हो गया हो तो एक बार बताइयेगा ज़रूर | धन्यवाद !
देवेश दिनवंत पाल |
14/07/2020
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शुरुआत 1947 से
रामवीर सिंह, हिंदुस्तान ! मु. जफ़र बेग, पाकिस्तान ! सुखविंदर सिंह, ......हिंदुस्तान | ये
आवाज़ थोड़ी रुककर आयी थी और इस आवाज़ में गले का भारीपन और आँखों के आंसुओं की नमी
भी अच्छे से महसूस की जा सकती थी | दरअसल ये आवाजें बॉर्डर रिफ्यूजी कैंप के अनाउंन्समेंट
एरिया से आ रही थी | यह कैंप हिंदुस्तान के बॉर्डर से करीब ही था या शायद नए
पाकिस्तान की सरज़मीन पर था, खैर उससे क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि जिस जनता का भला
करने और लोगों के अधिकारों को समान रूप से एक सतह पर करने का वादा किया गया था,
दरअसल वही लोग आज अपने गाँव, अपने घर और अपने सभी करीबी लोगों, जिनमें से कुछ के
साथ उनका खून का रिश्ता भी नहीं था हां लेकिन जो भी था वो उन सबसे बढ़कर ही था , उन
सबको छोड़कर एक ऐसी नयी ज़मीन पर दोबारा अपना घर बसाने जा रहे थे जहां उनको अपना
कहने वाला कोई नहीं था या शायद सभी नए लोग ही थे | वह उस समय वहां अपनी ड्यूटी पर
था उसी कैंप में, और सभी शरणार्थियों के लिए भोजन व पानी का बंदोबस्त कर रहा था |
आगे की बातचीत के लिए उसको हर बार वह या वो बुलाना ठीक नहीं लगता इसलिए एक नाम सोच
लेते हैं | मेरे ख्याल से प्रीतम सिंह नाम सही रहेगा | प्रीतम सिंह एक कैंप
निरीक्षण अधिकारी के साथ सहायक की हैसियत से वहां पर आया था | और वह अपने आस पास
की बेकाबू भीड़ और उसमे अनेकों लाइनें जिनमें सैकड़ों लोग खड़े थे उन्हें देख रहा था
| वो उन बुजुर्ग लोगों को भी देख रहा था जिनमें शायद अब बोलने तक की सुध नहीं बची
थी और उन रोते बिलखते हुए बच्चों को भी देख रहा था जो शायद 3 या 4 दिनों के भूखे
थे | वह कैंप के इस माहौल को देख कर बहुत परेशान हो जाता है और वापस वायसराय हाउस
में स्थित अपने ऑफिस में लौट जाता है और कैंप की पूरी जानकारी ब्रिटिश अधिकारी को
देता हैं |
शाम का समय था | सूरज अस्त होने की लगभग तैयारी कर चुका था | प्रीतम
सिंह अपने खेतों पर बने मैरा के ऊपर बैठा हुआ डूबते हुए सूरज की लालिमा और उसकी
उपस्थिति को क्षितिज से मिलते हुए देख रहा था | इतने में ही एक हाथ उसके कंधे पर
आकर रख जाता है | “ क्यों अफ़सर बाबू , यहाँ अकेले बैठे क्या कर रहे हो “ यह हाथ और
आवाज़ दोनों ही ज़हीर अहमद के थे | “अरे तुम दफ्तर से कब आये ज़हीर मियां ! ” प्रीतम
ने लगभग आश्चर्य के भाव से देखते हुए ज़हीर से पूछा | ज़हीर , प्रीतम के बचपन का दोस्त था या यह भी कहा
जा सकता है कि दोनों सगे भाई जैसे थे, बस फ़र्क था तो एक की टोपी और दुसरे के माथे
के तिलक का था जो उन दोनों के मध्य धर्म और सम्प्रदाय की एक दीवार खड़ी कर देता था
| ज़हीर के पिता बम्बई के किसी कारखाने में मजदूर थे और ज़हीर की मां ने जब इस
दुनिया को अलविदा कहा तब ज़हीर इतना छोटा था कि वह सिर्फ अपने मुंह से अम्मी बोलना
ही सीख पाया था | ज़हीर तभी से अपने चाचा हिदायत खान के पास रहता था | सुबह के समय
तैयार होकर दोनों ही अपनी किताबों के साथ घर से एक साथ निकलते थे लेकिन कुछ दूर
चलने के बाद उनका वह एक रास्ता दो अलग अलग रास्तों में बंट जाता था | जिसमे से एक
रास्ता विद्यालय की ओर जाता था और दूसरा रास्ता मौलवी साहब के मदरसे की ओर | शायद
इन्ही रास्तों के बंटवारे ने एक दिन हिंदुस्तान के बंटवारे के लिए बीज बोना शुरू
कर दिया था |
ज़हीर प्रीतम के सवाल को लगभग टालते हुए उसके पास आकार बैठ गया और जेब
से दो सिगरेट निकली और उसे सुलगाकर प्रीतम के सामने बढ़ा दिया | अब दोनों ही अपनी
अपनी सिगरेट के धुंए से छल्ले बनाकर हवा में उड़ा रहे थे और अपने पूरे दिन का हाल
एक दूसरे को सुनाते जा रहे थे | सबसे पहले प्रीतम ने ज़हीर से पूछा कि उसका आज दिन
कैसा रहा ? इस बात का जवाब बड़े ही थके हुए अंदाज़ में देते हुए ज़हीर ने कहा कि – “’
आज पूरे दिन में आराम से बैठने तक का समय नहीं मिला | कई बड़े नेताओं और ब्रिटिश
अधिकारिओं के साथ बैठक में जिन्ना साहब के साथ में जाना पड़ा | उसके बाद वापस
पार्टी के दफ़्तर आकर कुछ जरूरी कागजों का अधूरा काम पूरा करने में लग गया जिसके
कारण आज का दिन बहुत ही थकान भरा था | यहाँ से यह भी बताते चलें कि ज़हीर मियां,
मोहम्मद अली जिन्ना के निजी सहायक के तौर पर अपनी सेवा प्रदान कर रहे थे और
मुस्लिम लीग के कुछ वरिष्ठ नेताओं से ज़हीर मियां के अच्छे संबंध भी थे | अपने थके
हरे हाल के कुछ और लतीफे सुनाते हुए ज़हीर ने वही सवाल प्रीतम से करते हुए पूछा कि
उसके दिन का हाल कैसा था | प्रीतम ने बताया कि – “आज वायसराय हाउस में एक बैठक हुई
जिसमें सभी प्रान्तों के गवर्नरों ने तथा कांग्रेस के कुछ नेताओं ने हिस्सा लिया |
लार्ड माउंटबेटन ने सख्त शब्दों में कहा है कि – “ हालात अब पहले से और ज्यादा
बद्दतर होते जा रहे हैं | कुछ प्रान्तों में दंगे और हिंसा बहुत ज्यादा हो रहे हैं
| कुछ प्रमुख रियासतों के महाराजा और अन्य छोटे दलों के नेताओं से भी कोई सीधा
सम्पर्क नहीं हो पा रहा है | मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच हिंसा और भी घातक होती
जा रही है | वे सभी सत्ता बदलने के डर से बहुत अधिक भयभीत दिखाई पड़ते हैं | “ इस
ख़बर को सुनने के बाद ज़हीर ने चिंता व्यक्त करते हुए प्रीतम से पूछा कि प्रवासी
कैम्पों में लोगों तक मदद किस तरह पहुंचाई जा रही है और बंगाल में पड़े सूखे के
कारण वहां किस तरह की स्थिती बनी हुई है ? ज़हीर की इस चिंता पर प्रीतम ने कोई जवाब
तो नहीं दिया लेकिन अपनी अधजली सिगरेट को बुझाकर फेंकते हुए बस इतना ही कहा कि – “
भयानक हिंसा और दंगों के इस माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि जिस आज़ादी के लिए
इतने कष्ट सहे गए और बलिदान दिए गए हैं वह आज़ादी शायद अपने साथ बंटवारे को भी
लाएगी | ”
अब प्रीतम और जहीर दोनों ही घर की ओर चल देते हैं क्यूंकि अँधेरा होने
वाला था और प्रीतम को घर पहुँचकर अपने कल के भेजे हुए ख़त का ज़वाब भी तो पढना था |
ये ख़त आख़िर इतना ख़ास क्यों था जिसके आने का इंतज़ार प्रीतम को हमेशा रहता था |
दरअसल इस ख़त को जो शख्स लिखता था वो प्रीतम की ज़िन्दगी में एक अलग स्थान रखता था
शायद इसीलिए ....|
फ़िरदौस , एक शब्द में उसे बस इतना ही कहा जा सकता है कि यह वो नाम है
जिसके सामने आने पर या यह नाम लेने पर प्रीतम के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान आ
जाती थी | उसकी आँखों में एक अलग तरह की चमक सी होती थी | और ऐसा ही कुछ हाल
फ़िरदौस का भी होता था जब भी वह प्रीतम को अपने सामने देखती थी तो वही कुछ पल उसके
लिए किसी अमूल्य वस्तु से कम नहीं थे | फ़िरदौस शब्द का अगर हिंदी रूपांतरण किया
जाये तो इसका अर्थ है – “स्वर्ग “ | शायद फ़िरदौस इस नाम की असली हक़दार भी थी |
चेहरे पर एक अद्भुत सी चमक , माथे पर उलझती हुई कुछ जुल्फें जिनको शायद उसने कुछ
ज्यादा ही आज़ादी दे रखी थी क्यूंकि बार बार वे उसके गालों से आकार टकरा जाती थी और
वो उन्हें अपनी उँगलियों में फंसाकर अपने कानों के पीछे बड़ी ही आसानी से दबा लेती
थी | उसकी होंठों की मुस्कराहट में तो इतना असर था कि प्रीतम कभी कभी बस उसकी
मुस्कराहट को एकटक देखता ही रहता था | वो जब बोलती थी तो ऐसा लगता था की मानों
सुबह के शांत वातावरण में दूर कहीं कोई कोयल आवाज़ दे रही हो | और आँखे, उनके बारे
में तो कहना ही क्या , उनको सिर्फ देखने से ही पता चल सकता था कि ये कितना कुछ
कहना चाहती हैं | वो किसी लेख़क की लिखी हुई सबसे सुंदर रचना, किसी शायर की ज़िन्दगी
की सबसे ख़ूबसूरत नज़्म, और किसी चित्रकार के हाथों से बनी हुई वो शानदार तस्वीर थी
जिसको अगर एक बार नज़र भर के लिए देख लिया जाये तो दोबारा देखने से अपने आप को भी
ना रोक सकें , वो उस खूबसूरत नज़्म सी थी जिसको पढ़ने के बाद दोबारा पढ़ने का मन करे
, और उस कहानी की तरह , जिसका एक पन्ना अगर पढ़ लिया जाये तो वह दूसरा पन्ना पलटने
पर मजूबर कर दे | शायद इसीलिए प्रीतम उसके भेजे हुए ख़त के इंतज़ार में उत्साहित सा
रहता था | फ़िरदौस और प्रीतम एक - दूसरे के बारे में आख़िर क्या विचार रखते थे यह
बात तो सिर्फ़ वही दोनों जानते थे लेकिन जो कुछ भी था वो बाकि सभी बातों से बढ़कर ही
था | दोनों के सुख और दुःख एक दूसरे को समान रूप से प्रभावित करते थे |
फ़िरदौस के भेजे हुए ख़त को लिफ़ाफे से निकालकर, प्रीतम ने पढना शुरु
किया | इस ख़त का इंतज़ार प्रीतम को पिछले दो हफ़्तों से था क्यूंकि जब से फ़िरदौस को
कार्यालय से तबादला देकर लेडी वायसराय के साथ उनकी ख़ास सेक्रेटरी के तौर पर
नियुक्त किया गया था तब से उसे बहुत ही कम वक्त मिल पाता था कि वह प्रीतम को ख़त
लिखे या उससे मुलाक़ात करने की कोशिश करे | इधर प्रीतम की व्यस्तता भी कुछ इसी तरह
ही थी | ख़त में कुछ पुरानी बातें और उनके जवाब थे और कुछ नए हालचाल भी थे | लेकिन
अंत में फ़िरदौस ने एक ऐसी बात लिखी थी कि जिससे प्रीतम ख़ुशी से झूमने लगा | बात
कुछ ऐसी थी कि इसी हफ्ते लेडी वायसराय उन सभी प्रवासी कैम्पों का निरीक्षण करने आ
रही थी जिनका सर्व संचालन वायसराय हाउस से हो रहा था | उनके साथ फ़िरदौस भी आ रही
थी जिससे इस बात के आसार कुछ ज्यादा हो जाते हैं कि उन दोनों को मुलाक़ात करने का
थोडा वक्त मिल ही जायेगा | इस खबर से प्रीतम बहुत खुश था कि कुछ ही दिनों में वह
फ़िरदौस से मिलने वाला है |
दो दिनों बाद आखिरकार वो दिन आ ही गया जब लेडी वायसराय अपने स्टाफ़ के
साथ कैम्पों के निरीक्षण करने के बाद वापस वायसराय हाउस में लौट आई | अब फ़िरदौस के
पास कुछ वक्त था कि वो प्रीतम से मुलाक़ात कर सके | वह प्रीतम से मिलने तय समय और
उन दोनों की पसंदीदा जगह पर पहुँच गयी | वह जगह एक झील के किनारे एक बड़े से
छायादार पेड़ के नीचे थी जहां चारों ओर खुशबूदार फूल के पौधे थे | एक दूसरे से
मिलते ही कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को गले से लगाये रहे, जैसे कई सालों बाद मिले
हों | एक दूसरे से पिछले दिनों के हाल जानने के बाद दोनों अपने अपने काम के बारे
में बताने लगे | फ़िरदौस ने प्रीतम को बताया कि पिछले कुछ दिनों से वह मौजूदा
हालातों को देखकर काफ़ी परेशान है | आज जब लेडी वायसराय के साथ प्रवासी कैंप के
दौरे पर गयी तो वहां की हालत अच्छी नहीं थी | फ़िरदौस ने बताया की उसने लेडी
वायसराय को लॉर्ड माउंटबेटन से उनके कमरे में बात करते हुए सुना था | वे कह रही थी
कि – “सभी प्रान्तों और रियासतों की मौजूदा हालात देखते हुए मुझे नहीं लगता कि
हिंदुस्तान का बंटवारा एक सही तरीका है जिससे हालात सुधारे जा सके | मेरे ख्याल से
इस समस्या से निपटने के लिए आपको सबसे पहले जिन्ना से मुलाक़ात करनी चाहिए | और
उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहिए कि जिन अधिकारों और आदर्शों की भविष्य में रक्षा के लिए वह पकिस्तान बनाना चाहते हैं वे
सभी आदर्श एक समूचे हिंदुस्तान में भी सुरक्षित और सम्रद्ध रहेंगे |” प्रीतम इस
बात को बड़े गौर से सुन रहा था और बात ख़त्म होते ही उसने भी अपने बीते दिनों के हाल
को सुनाना शुरू किया जिसके कारण वह भी परेशान था |
लेडी वायसराय की सलाह से लॉर्ड माउंटबेटन काफी प्रभावित हुए थे और उन्होंने जिन्ना और
कांग्रेस के नेता पं. नेहरु को मिलने के लिए सन्देश भिजवाया | नियत समय पर
उन्होंने पहले नेहरु जी से बैठक में कुछ जरूरी मसलों पर चर्चा की और उन्हें पूरा
हाल बताया कि किस तरह जिन्ना मुसलमान जनता के अधिकारों को लेकर चिंतित हैं कि
हिंदुस्तान में मुस्लिम जनता के आदर्शों और अधिकारों की रक्षा नहीं की जा सकती है
| वायसराय की इस बात का जवाब पं. नेहरु ने
काफ़ी शालीनता से देते हैं कि - “ कांग्रेस हिंदुस्तान का बंटवारा कभी मंजूर नहीं
कर सकती है | इस बंटवारे से हमारे सभी आदर्श धूल में मिलकर ख़त्म हो जायेंगे जिनके
लिए ना जाने कितने ही कष्ट सहे गए हैं और कितने ही बलिदान दिए गए हैं | सब कुछ एक
ही क्षण में व्यर्थ हो जायेगा | “ नेहरु जी की इस बात पर वायसराय कहते हैं कि – “
हम इस मसले का एक सीधा और सरल उपाय ढूंढ रहे है , क्या आपके पास कोई और तरीका है
जिससे अमन कायम किया जा सके | हम हिंदुस्तान की शासन व्यवस्था आपके हांथों में
कैसे सौप सकते हैं जबकि यहाँ की सरकार उसे सँभालने के लिए एकमत नहीं है |” नेहरु
जी कुछ देर सोचने के बाद, दीवार पर टंगे हुए हिंदुस्तान के नक़्शे की ओर इशारा करते
हुए कहते हैं कि – “ हिंदुस्तान कागज़ पर खिंची हुई टेडी मेढ़ी लकीरों के बीच घिरी
हुई कोई ज़मीन नहीं हैं जिसे जैसे चाहे वैसे बांटकर अलग किया जा सके, हिंदुस्तान की
जनता ही सम्पूर्ण हिंदुस्तान को परिभाषित करती है | इसे आप मेरी एक सलाह समझे या
फिर एक विनती, लेकिन जिन्ना की ज़िद की वजह से हमें दो हिस्सों में ना बांटे | हिंदुस्तान
का बंटवारा हम सभी के लिए एक भयंकर त्रासदी लेकर आयेगा | ”
उधर झील के किनारे बैठे हुए, प्रीतम फ़िरदौस का हाथ अपने हाथ में लेकर
कहता है कि जब हमें आज़ादी मिल जाएगी तब सबसे पहले तुम क्या करना चाहोगी , फ़िरदौस
मुस्कराते हुए कहती है कि वह इसी झील के किनारे पर बैठकर प्रीतम के साथ शाम के
डूबते हुए सूरज और आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को देखना चाहेगी “| फ़िरदौस की इस
बात पर दोनों बहुत देर तक हँसते रहते हैं |
अगले दिन लॉर्ड माउंटबेटन महात्मा गाँधी जी को वायसराय भवन में आने का
न्योता देते हैं और बापू यथा समय पर आ जाते हैं | वायसराय बड़ी ही गर्मजोशी के साथ
बापू का स्वागत करते हैं और उन्हें बगीचे की ओर चलने का इशारा करते हैं | लॉर्ड
माउंटबेटन बापू को तत्कालीन समय का पूरा हाल सुनाते हैं और नेहरु से हुई बात चीत
के बारे में भी बताते हैं | बापू लॉर्ड वायसराय को बताते हैं कि – “क्या आप इस बात
को जानते हैं कि जिन्ना के मन में मुसलमानों की असुरक्षा का डर आखिर आया कहाँ से
है ? इस डर का कारण ब्रिटिश शासन नीतियाँ ही हैं जिन्होंने देश की जनता को हिंदू
और मुसलमान में भेदभाव करने का पाठ पढाया है | ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इस बात के
भ्रम पर भरोसा दिलाया है कि आज़ादी के बाद मुसलमान भाइयों के प्रति भेदभाव का
बर्ताव किया जायेगा और चूँकि वे हिंदुस्तान की जनसँख्या के करीब एक चौथाई भाग हैं
इसलिए उनके हितों और मांगों को दबा दिया जायेगा | इसी कारण जिन्ना इस बात को
मुद्दा बनाकर नए मुल्क पकिस्तान की मांग कर रहे हैं | “ बापू के यह शब्द लॉर्ड
माउंटबेटन को आश्चर्यचकित कर देते हैं क्यूंकि उनके भारत आगमन से पहले उन्हें ऐसी
किसी भी तरह की जानकारी नहीं थी और अब सामने उभरती हुई ऐसी परिस्थितियों से वह
काफ़ी परेशान भी थे |
कार्यालय के कामकाज़ से फुर्सत होकर प्रीतम , ज़हीर से मिलने के लिए
जाता है | ज़हीर बड़े ही उत्साहित भाव से उससे फ़िरदौस और उसके लेडी वायसराय के साथ
काम के अनुभव के बारे में पूछता है | प्रीतम एक एक कर सभी बाते बताता है | ज़हीर
प्रीतम से उसकी शादी के प्रस्ताव के बारे में भी पूछता है जिसके लिए प्रीतम फ़िरदौस
से बात करने वाला था, लेकिन प्रीतम इस बार भी असफ़ल हो जाता है | शायद प्रीतम इस
बारे में बात करने के लिए थोडा असहज महसूस कर रहा था बिना इस बात को जाने कि
फ़िरदौस के मन में भी यह बात थी कि वह कैसे अपने दिल की बात प्रीतम से कहे कि वह अब
पूरी जिंदगी बस प्रीतम के साथ जीना चाहती है | ज़हीर प्रीतम को मुस्लिम लीग के दफ्तर
में हुई एक बैठक के समाचार सुनाते हुए कहता है कि – “ जिन्ना ने आज बैठक में लार्ड
माउंटबेटन के उस प्रस्ताव को रखा है जिसमे यह कहा गया है कि आज़ाद हिंदुस्तान की
पहली सरकार जिन्ना बनाये लेकिन लीग ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए एक नए मुल्क
पकिस्तान की मांग की है | और बैठक में इस बात का भी ज़िक्र था कि गाँधी जी बंटवारे
के इस प्रस्ताव से बिल्कुल भी ख़ुश नहीं हैं “ ज़हीर की इस बात से प्रीतम सोच में पढ़
जाता है कि आख़िर कब तक ऐसे ही हालात हिंदुस्तान में बने रहेंगे | क्या अब
हिंदुस्तान अखंड रहेगा या इसके दो टुकड़े कर दिए जायेंगे |
अब वर्तमान में स्थिति कुछ इस तरह थी कि दंगे और हिंसा की ख़बरे दिल्ली
के कुछ इलाकों से भी आने लगी थी | वहां के गांवों में दंगाइयों ने घरों को आग लगा
दी थी , लोगों को वहां से भगाया जा रहा था और जो इसका विरोध कर रहे थे वे सभी मारे
जा रहे थे | इस पूरे माहौल को देखते हुए लॉर्ड माउंटबेटन को जिन्ना की बात स्वीकार
करना ही एक अंतिम उपाय लगा | ब्रिटिश सरकार के इस फ़ैसले को जिसमे हिंदुस्तान के दो
टुकड़े होने वाले थे , इस पूरी योजना को एक नाम दिया गया जिसका नाम था – “ द माउंटबेटन प्लान “ | बंटवारे की लकीर खींचने के लिए
ब्रिटिश सरकार के एक नुमाइन्दे सर रेडक्लिफ को बुलाया गया जिन्हें सीमा आयोग के
अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया गया |
दिन के समय में जब प्रीतम अपने कार्यालय में
होता है तब उसे इस बात का पता चलता है कि बंटवारे के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी
है और सीमा निर्धारण का काम भी जल्दी ही शुरू होने वाला है | वह कार्यालय से जब घर
की ओर चलता है तो रास्ते में उसे ज़हीर के चाचा हिदायत खान आते हुए दिखाई पड़ते हैं
| वे बहुत ही घबराये हुए और परेशान से थे , प्रीतम के पूछने पर कि आखिर बात क्या
है वे ज़वाब देते हैं – “ पड़ोसी गाँव के हिन्दू लोगों ने मुसलमानों की बस्ती में
आगजनी और कत्लेआम क़र दिया है जिससे जान माल की बहुत हानि हुई है | उन्होंने घरों
को आग के हवाले कर दिया है और लोगों के साथ मारपीट कर रहे हैं | प्रीतम इतनी बात
सुनकर गाँव की ओर भागने लगता है और ज़हीर को जोर जोर से चिल्ला कर पुकारने लगता है
| काफ़ी देर ढूंढने के बाद जब ज़हीर का कोई पता नहीं चलता है तो प्रीतम परेशानी की
हालत में वहीँ ज़मीन पर बने एक टीले पर बैठ जाता है इतने में ज़हीर एक घर से निकलकर
बाहर आता है और प्रीतम भागकर उसके पास पहुँच जाता है | “ सब कुछ बर्बाद कर दिया
यार , घरों को आग लगा दी और अपने स्कूल वाले इक़बाल मास्टरजी को भी मार दिया , उनके
परिवार के सभी लोग घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं और पीछे वाली बस्ती में बहुत खून
ख़राबा हुआ है |” इतना कहते कहते ज़हीर का गला लगभग रुंध सा गया था और वह प्रीतम से
लिपटकर बहुत ज़ोर से रोने लगा था | इस हिंसा को देखकर प्रीतम की आँखों में भी आंसू
आ गए थे |
वायसराय हाउस में सर रेडक्लिफ का आगमन हो
चुका था | लॉर्ड वायसराय जब सर रेडक्लिफ से पूछते हैं कि उन्हें ब्रिटिश सरकार से
क्या आदेश मिला है तो वह जवाब देते हैं कि “ मुझे आदेश मिला है कि 15 अगस्त पहले
हिंदुस्तान के नक़्शे पर दो बिन्दुओं को मिलाती हुई एक ऐसी रेखा खींचनी है जो लोगों
के घरों और खेत – खलियानों के बीच से होती हुई जाएगी और जो हिंदुस्तान के
हिन्दू,सिख और मुसलमानों को दो अलग अलग देशों में बाँट देगी ” | रेडक्लिफ़ को
वर्तमान की सभी स्थितियों से अवगत कराया जा चुका था | उन्हें सभी राज्यों की
भौगोलिक जानकारी देते हुए यह भी बता दिया गया था जितना जल्दी हो सके इस काम को
शुरू कर देना चाहिए | भौगोलिक नक्शों को देखते हुए रेडक्लिफ़ , लार्ड वायसराय को
बताते हैं - “ इन सभी नक्शों और पूरी जानकारी का अध्ययन करने के लिए उन्हें कुछ
वक्त चाहिए क्यूंकि हिंदुस्तान की भौगोलिक स्थिति के बारे में उन्हें पहले से कोई
भी अंदाज़ा नहीं था क्यूंकि ये उनका हिंदुस्तान में प्रथम आगमन था | इस बात को
सुनकर लॉर्ड वायसराय एकदम भौचक्के रह जाते हैं कि आखिर एक ऐसा व्यक्ति, जिसने आज
से पहले कभी भी हिंदुस्तान की ज़मीन पर कदम तक नहीं रखा वो उस देश के बंटवारे की
लकीर कैसे खींच सकेगा |
कुछ दिनों बाद एक ख़बर वायसराय कार्यालय में
भेजी जाती है कि लाहौर में दंगा फिर से भड़क गया है और बम्बई में लोग भीड़ लगाकर,
सड़को पर उतरकर नारेबाजी और प्रदर्शन कर रहे हैं | इतने ख़राब हालातों में प्रीतम
फ़िरदौस से मिलने के लिए एक ख़त लिखता है और कुछ दिनों बाद जब वे दोनों मिलते हैं तो
प्रीतम, ज़हीर के गाँव में हुई हिंसा के बारे में बताता है | प्रीतम फ़िरदौस की गोद
में सिर रखकर उसी झील के किनारे पर लेटा हुआ था जो उन दोनों की मनपसंद जगह थी | वह
फ़िरदौस के चेहरे से उसकी आँखों को घेरे हुए कुछ जुल्फों को हटाकर उससे कहता है कि
उसको कुछ जरूरी बात बतानी है, इस बात पर फ़िरदौस तपाक से कहती है कि उसे भी कुछ
जरूरी बात बतानी है जो वह पिछले ख़त में लिखना भूल गयी थी | वे दोनों कुछ और बात
आगे कह पाते तब तक ज़हीर वहां पहुँच जाता है और कहता है कि दिल्ली में फिर से दंगा
भड़क गया है, मुसलमानों ने कुछ सरकारी दफ्तरों को आग भी लगा दी है | इसलिए सभी को
अब घर चलना चाहिए और फ़िरदौस की ट्रेन अब से कुछ ही देर में स्टेशन से छूटने वाली
है | प्रीतम, फ़िरदौस को छोड़ने स्टेशन पर आता है और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर
उससे एक वादा करता है कि, यहाँ दिल्ली के हालात सामान्य होने पर जब भी वह दिल्ली
वापस आएगी तो वह उसे अपने मन की एक बताएगा जो उसने आज तक फ़िरदौस से नहीं कही है |
फ़िरदौस प्रीतम के हाथ के ऊपर अपना हाथ रखते हुए कहती है कि उसे भी कुछ जरूरी बताना
है उसको | दोनों एक दूसरे को एकटक इस नज़र से देख रहे थे जैसे कि जो भी बातें ये
दोनों कहना चाहते हैं वो इन्हें पहले से ही मालूम है बस जुबां से कहने भर की देर
है | फ़िरदौस प्रीतम से दोबारा उसी झील के किनारे, पेड़ के पास मिलने का वादा करके
ट्रेन में बैठ जाती है | ट्रेन के उस डिब्बे में, जिसमें फ़िरदौस बैठी हुई थी ,
प्रीतम उसको तब तक देखता रहता है जब तक कि ट्रेन आँखों से धुंधली नहीं हो जाती |
दंगों और हिंसा के कारण लोगों ने पलायन करना
शुरू कर दिया था | रिफ्यूजी कैंप में लोगों की तादाद दिनों दिन बढती ही जा रही थी | उनके
लिए खाना, पानी, दवाइयां और जरूरी सामान जुटाने में ख़ासी दिक्कतें आ रही थी |
प्रीतम भी सभी व्यवस्थाओं का अच्छे से जायजा ले रहा था और राशन आदि की व्यवस्था
में जुटा हुआ था | उधर लॉर्ड वायसराय सर रेडक्लिफ़ पर सीमा निर्धारण के काम को
जल्दी ख़त्म करने का दबाव बना रहे थे | अगले दिन सर रेडक्लिफ़ को एक ख़त और कुछ जरूरी
दस्तावेज लन्दन से प्राप्त होते हैं जिसमें हिंदुस्तान के बंटवारे को लेकर काफी
अहम् जानकारी होती है | यह दस्तावेज़ विंस्टन चर्चिल ने रेडक्लिफ़ के लिए भिजवाये थे
| ख़त को पढ़ते ही रेडक्लिफ़ के पैरो तले मानो ज़मीन सी खिसक जाती है और वे इस बात की
जानकारी लॉर्ड माउन्टबेटन को देते हैं और कहते हैं कि “ कायदे में हम जिसे आज़ादी
कह रहे हैं वह तो कुछ नेताओं और ब्रिटिश हुकूमत के बीच एक समझौता मात्र है |
बंटवारे की यह योजना पूर्णनियोजित है, जिसमे आप, हम और बाकि के लोग बस किरदार
मात्र हैं जबकि इसकी लगाम तो वहां लंदन में किसी के हाथों में है | “
ज़हीर , प्रीतम को ढूँढ़ते हुए उस रिफ्यूजी कैंप में पहुँच जाता है जहां
का जायजा प्रीतम संभाल रहा था | ज़हीर के हाथ में एक अखबार था और वह प्रीतम के पास
जाकर उस अखबार को दिखाते हुए गिर पड़ता है | प्रीतम अखबार को जैसे ही पढता है उसके
सामने मानो जैसे अँधेरा सा छाने लगता है | उसे लगता है कि उसके चारों ओर सब कुछ एक
जगह शिथिल सा हो गया है और सब एकदम शांत सा है | अखबार में ख़बर छपी थी कि – “ कल
रात को दिल्ली से पंजाब के लिए रवाना हुई ट्रेन में लूटपाट और कत्लेआम हुआ था सभी
लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया | कोई भी व्यक्ति जिंदा नहीं बचा था | “ ज़हीर
लगभग रोते हुए कहता है कि ये वही ट्रेन है जिसमें फिरदौस अपने घर के लिए गयी थी |
उसने वह बोगी की जाँच भी करायी जिसमे फ़िरदौस बैठी थी लेकिन उसका कोई अता पता नहीं
चला |
पुलिसकर्मियों द्वारा जब ट्रेन से लाशों को निकला जा रहा था तो एक
बोगी में उन्हें एक मटमैले रंग की पोटली जैसा कुछ मिलता है जिसमें कुछ सील बंद
कागज़ थे जिनपर सरकारी मुहर लगी हुई थी और कुछ कपडे भी थे | सभी लाशों की शिनाख्त
करने पर भी प्रीतम और ज़हीर को फ़िरदौस की लाश कहीं नहीं मिलती हैं लेकिन अचानक से
प्रीतम की नज़र उस पोटली पर जाती है और वह उसे पहचान जाता है | पोटली को खंगालते
हुए उसमें एक ख़त मिलता है जिसे फ़िरदौस ने प्रीतम के लिए लिखा था | ख़त में फ़िरदौस
ने अपने दिल की वह बात लिखी थी जिसे वह उस दिन झील के किनारे प्रीतम से नहीं कह
पाती है | ख़त में उसने प्रीतम के साथ पूरी उम्र बिताने का वादा भी किया था |
ख़त को पढते पढते प्रीतम की आँखों में आंसू आ जाते हैं और वह उस ख़त को सीने से
लगाकर रोने लगता है | ज़हीर उसको सँभालने की कोशिश करता है | फ़िरदौस की लाश न मिलने
पर उन दोनों को इस बात का पता नहीं चल पता है कि ट्रेन में हुई हिंसा में क्या
फिरदौस जिंदा बच पाई है या नहीं ?
इस घटना के कुछ दिनों बाद जब प्रीतम अपनी ड्यूटी पर था और प्रवासी
कैंप में भर्ती हुये घायल शरणार्थियों की देखभाल कर रहा होता है तभी उससे मिलने
ज़हीर अहमद आता है और दोनों हर बार की तरह अपनी अपनी सिगरेट से धुआं उड़ा रहे होंते
हैं तभी एक सिपाही आकर प्रीतम से कहता है कि कैंप में एक प्रवासी महिला आई हुई है
वह काफी थकी हुई और बीमार सी लग रही है | वह अपने आप को लेडी वायसराय की ख़ास
सेक्रेटरी बता रही है .......| ” उस सिपाही की बात सुनकर प्रीतम और ज़हीर दोनों एक
दुसरे का मुंह ताकते हुए रह जाते हैं |
*******************समाप्त*******************

Story kafi intresting thii.Dil se dhanyawad karna chahunga. Iske aage ka msg whatapps pr
ReplyDeleteThank you so much Bhaiya ji 😊
ReplyDeleteBahut accha likha h devesh.. emotion bhi kafi acche se likhe h..♥️♥️
ReplyDeleteThanks a lot for this appriciation 😊🤩
DeleteNice 👍 and keep it up
ReplyDeleteThanks 😊
DeleteBhai suberbbb story bhai but iske aage wala kha hai
ReplyDeleteIske aage ki kahani next episode me 😊. Tab ke liye nayi Kavita ko padhiyega.
DeleteArticle padhne ke liye dhanyawad.🤩
Mere bhai bhut shi likhte ho bhut aage jaoghe bilkul dada je ke padchino pe chal rhe ho i proud You my brother
ReplyDeleteThank you so much bhai for this encouragement. I really need like this. 🤩🤩
DeleteKaafi acche words ka use kiya hai or firdoss ki love story interesting thi ,ek sabd m bolu toh" readable"
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