एक कविता
फ़िक्र हुई तो हमने पूछा
अपने भी कुछ हाल सुनाओ ,
हाल दुरुस्त हैं, मिजाज़ बोरियत
अब दिनवंत तुम ही बतलाओ ,
कुछ सूझा ना हमको उस पल
हम कुछ यूँ
हम कुशल छेम अभिलाषा मे
फ़िर प्रश्न प्राप्ति कर बैठे , ...1
हमने पूछा वक्त बहुत है
वक्त बिताते हो कैसे,
क्या पढ़ते हो कविता मेरी
या प्रेम पत्र हो ‘उसका’ जैसे ,
प्रेम प्रणय तो ह्रदयघात था,
यह प्रेमघात हम कैसे सहते ,
प्रेम शब्द की स्वीकृति पर तुम क्या कहते
यही सोच हम कभी - कभी हँसते रहते , ....2
यार दोस्तों के संग में जब
खेल तमाशे होते थे ,
अपनों के संग होकर भी हम
यूँ अनजाने रहते थे ,
तुम बिना हमारी स्म्रति के
सब मनन व्यर्थ से होते थे ,
तुम बिना हमारे शब्द सभी ये
ख़ाली कपोल से होते थे ,
....3
बिना दिखावे के ये सब कुछ
खेल तमाशे कैसे होते ,
बिना दिखावे के ये सब कुछ
हँसी ठिठोली कैसी होती ,
बिना तुम्हारी चर्चाओं के
ये कवितायेँ हमारी कैसी होती ,
लग जाती जो मुहर तुम्हारी
दिनवंत ह्रदय के कागज़ पर
तब इन कविताओं, किस्सों में
हम होते , ना तुम होती || ....4

Kavita ke jariye kiske haal puch rahe bahut fikra ho rahi bro.
ReplyDeleteMst kavita
Thanks Surendra Kavita ko poora padhne ke liye. 😊
DeleteWahh wahhhh...bahut hi Badiyaaaa...😁💞
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