एक कविता



फ़िक्र हुई तो हमने पूछा

अपने भी कुछ हाल सुनाओ ,

हाल दुरुस्त हैं, मिजाज़ बोरियत

अब दिनवंत तुम ही बतलाओ ,

कुछ सूझा ना हमको उस पल

   हम कुछ यूँ ही कह बैठे ,    

हम कुशल छेम अभिलाषा मे

    फ़िर प्रश्न प्राप्ति कर बैठे , ...1

हमने पूछा वक्त बहुत है

वक्त बिताते हो कैसे,

क्या पढ़ते हो कविता मेरी

या प्रेम पत्र हो ‘उसका’ जैसे ,

प्रेम प्रणय तो ह्रदयघात था,

    यह प्रेमघात हम कैसे सहते ,

प्रेम शब्द की स्वीकृति पर तुम क्या कहते

        यही सोच हम कभी - कभी हँसते रहते ,   ....2

 यार दोस्तों के संग में जब

 खेल तमाशे होते थे ,

अपनों के संग होकर भी हम

यूँ अनजाने रहते थे ,

तुम बिना हमारी स्म्रति के 

सब मनन व्यर्थ से होते थे  ,     

तुम बिना हमारे शब्द सभी ये

                 ख़ाली कपोल से होते थे ,

    ....3

बिना दिखावे के ये सब कुछ

खेल तमाशे कैसे होते ,

बिना दिखावे के ये सब कुछ

हँसी ठिठोली कैसी होती ,

बिना तुम्हारी चर्चाओं के

  ये कवितायेँ हमारी कैसी होती ,

लग जाती जो मुहर तुम्हारी

दिनवंत ह्रदय के कागज़ पर

तब इन कविताओं, किस्सों में

          हम होते , ना तुम होती  ||      ....4

 

- देवेश दिनवंत पाल |

Comments

  1. Kavita ke jariye kiske haal puch rahe bahut fikra ho rahi bro.
    Mst kavita

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    Replies
    1. Thanks Surendra Kavita ko poora padhne ke liye. 😊

      Delete
  2. Wahh wahhhh...bahut hi Badiyaaaa...😁💞

    ReplyDelete

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