तहसील भ्रष्टाचार मुक्त है.....


तहसील भ्रष्टाचार मुक्त है

“अबे शम्भू , मास्क कहे नहीं लगाये हो बे , कोरोना बीमारी का डर नहीं लगता का ?? मास्क लगाये रहो, नहीं तो बहुतय समस्या हो जायेगा गुरु !“ रज्जन भैया ने लगभग चुटीले अंदाज़ में इस बात को शम्भू से कहा | लेकिन शम्भू आज कुछ भी चुटीला सुनने के मूड में ना थे | “ अरे ससुरा, का होगा ज्यादा से ज्यादा मौत ही तो आएगा ना, हां तो आ जाये निपट लें उससे भी, मरना तो है ही |” शम्भू लगभग गुस्से से झल्लाते हुए ही यह बात कह रहा था | “अरे शम्भू , का हुआ बे , इतना तमतमाए हुए काहे हो ? कौनौ बात हुआ है का “ शम्भू की गुस्से की आग पर रज्जन भैया ने अपनी सांत्वना के कुछ पानी के छींटे मारते हुए कहा | दरअसल शम्भू की गुस्सा का कारण कोई और नहीं बल्कि उनके ही ग्राम पंचायत क्षेत्र के पटवारी महोदय थे, अब आखिर पूरा माज़रा क्या था यह तो शम्भू अभी ख़ुद ही बताएँगे | शम्भू ने अपनी मुठ्ठी में तंबाकू और चूने को रगड़ते हुए रज्जन भैया के सामने अपनी हथेली फैलायी और फिर बताया कि कोरोना काल शुरू होने से पहले ही उनके बुजुर्ग पिता का देहांत हो गया था जिसके कारण उन्हें अपनी नौकरी से छूट्टी लेकर इंदौर से अपने गाँव वापस आना पड़ा था और उसके बाद से महामारी के प्रकोप के कारण वह वापस अपनी नौकरी के लिए ना जा सके और इसलिए उन्हें अपनी खेती और मजदूरी पर ही निर्भर होना पड़ा था | 
स्वर्गवासी पिताजी का अंतिम संस्कार विधि विधान से करने के बाद उनके कुछ जरूरी कागजातों के लिए उन्हें कई दिनों से कचहरी और तहसील के चक्कर काटने पड रहे थे और कहीं भी काम पूरा नहीं हो रहा था इस वजह से वह काफी परेशान भी थे | यही वजह थी कि शम्भू भैया आज किसी ऐसी ही बात से नाराज़ थे जिसने उन्हें कई दिनों से तहसील और रजिस्टार ऑफिस के चक्कर लगवाए थे |
इतनी सब बात जानने के बाद रज्जन भैया ने शम्भू को बताया कि “ सुनो बे शम्भू , अगर तहसील में कौनौ कागज़ी काम में समस्या आवे तो हमसे कह देना, तहसीलदार के कार्यालय में अपने जान पहचान का एक आदमी बैठता है , 5 मिनट में सब काम एकदम पम्पलीट करके देगा |” पम्पलीट ?? हां , शम्भू के मन में भी यही सवाल आया था कि ये पम्पलीट क्या होता है ? बाद में याद आया कि रज्जन भैया का हाथ अंग्रेजी में बहुत ज्यादा तंग है इसलिए कम्पलीट को पम्पलीट कह दिए |
कुछ दिनों के बाद आखिर शम्भू का तहसील कार्यालय में कुछ जरूरी काम फंस गया और वह रज्जन भैया को साथ लेकर कार्यालय समय पर पहुँच गए, इस उम्मीद में कि अब तो रज्जन भैया काम करा ही देंगे | वे दोनों समय पर आ तो गए थे लेकिन उसका कोई फायदा ना हुआ क्यूंकि जिस क्षेत्र पटवारी से उन्हें काम था वह अभी कार्यालय पहुंचा ही नहीं था | 2 घंटे के एक छोटे से इंतज़ार के बाद जब वह पटवारी कार्यालय पहुंचा तो उसने चपरासी को आदेश दिया कि एक एक करके लोगों को अन्दर भेजा जाये | थोड़ी देर बाद इन दोनों का भी नंबर आया | अन्दर जाकर शम्भू ने जमीन के जरूरी कागजात और सरकारी मुआवज़े के जरूरी कागज़ पटवारी महोदय के मेज पर रख दिए और उन्हें पूरी बात समझाई कि आखिर किस तरह पिछली बरसात में जो उनकी फसल नष्ट हो गयी थी उसका सरकारी मुआवज़ा अभी तक उनके बैंक खाते में नहीं आया था | पटवारी महोदय ने सभी कागजातों को एक सरसरी निगाह से देखते हुए कहा कि “ इस सरकारी मुआवज़े का मिलना थोडा मुश्किल सा दिखाई पड़ता है, लगता है काम हो नहीं पायेगा |“
“ऐसे कैसे नहीं हो पायेगा काम , मैं पिछले 2 हफ़्तों से तहसील कार्यालय चक्कर लगा लगाकर परेशान हो गया हूं और आज जब आप इन कागजों को देख रहे हैं तो कहतें हैं कि काम नहीं होगा , आखिर क्यों ??” लगभग चिल्लाते हुए स्वर में शम्भू ने यह बात कही | उन दोनों को चपरासी ने पटवारी के इशारे पर कार्यालय से बाहर कर दिया था | शम्भू बड़ा ही दुखी था लेकिन फिर रज्जन भैया ने अपनी जान पहचान वाला ब्रम्हास्त्र चलाया और उस लड़के को बुलाया जो उनकी जान पहचान वाला ही था और इसी कार्यालय में काम करता था | उस लड़के ने आकर पटवारी महोदय से इस मसले पर बात की और एक निष्कर्ष यह निकला कि “ कार्यालय में ऊपर बैठे कुछ बाबू लोगों को चाय नाश्ता कराना पड़ता है इसलिए पटवारी महोदय को कुछ सुविधा शुल्क देना पड़ेगा “ यह सुनते ही शम्भू ने तो एकदम इनकार कर दिया कि वह एक फूटी कौड़ी भी रिश्वत नहीं देगा लेकिन रज्जन भैया ने उसे मना लिया और उसे ना चाहते हुए भी रिश्वत देनी पड़ी | तो अंतत यह फ़ैसला किया गया कि पटवारी महोदय को 20000 रु. चाय नाश्ते के खर्चे के लिए दिए जायेंगे | 
तय समय पर दोनों लोग कार्यालय में रुपयों के लिफाफे को पटवारी की मेज के नीचे से खिसकाकर वापस बाहर आ गए, दोनों ही बहुत निराश थे | बाहर आकर शम्भू की नज़र तहसील कार्यालय की दीवार पर ऊपर की ओर जाती है, वहां एक लाइन लिखी थी “ तहसील भ्रष्टाचार मुक्त है “ इस ध्येय वाक्य को पढते समय एक व्यक्ति आखिर क्या सोच सकता है जो कुछ देर पहले ही एक तहसील कर्मचारी को 20000 रु. रिश्वत देकर आया हो | इस लाइन को दीवार पर देखते हुए वे दोनों थोड़ी वहीँ सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं | “ का लगता है शम्भू , इ जो लिखा हुआ है का इहै लाइन इ ससुरा पटवारी कभहू पढ़ा होगा का ? अगर पढ़ा होता तो इहां आज रिश्वत ना ले रहा होता |” रज्जन भैया ने कहा | शम्भू ने इस बात का जवाब बड़ी ही संजीदगी से दिया और शायद यही लेख और उस तस्वीर का वास्तविक अर्थ भी है , उसने कहा “ रज्जन भैया , दीवार पर लिखी लाइन में जहां “मुक्त “ लिखा है, अगर इस बात को ध्यान से देखा जाये तो पता चलता है कि मुक्त और युक्त लिखने में लगभग एक जैसे ही हैं लेकिन दोनों के अर्थ एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत हैं| यहाँ फ़र्क सिर्फ एक अक्षर का है | यदि उस अक्षर को बदल दिया जाये तो तो यह तहसील भ्रष्टाचार मुक्त से भ्रष्टाचार युक्त बन जाती है इसलिए हमें जीवन में अक्षरों के बदलाव से अपने आदर्शों को नहीं बदलना चाहिए | “
इस पंक्ति को एक बार पढ़कर ही इसका मूल अर्थ शम्भू और रज्जन भैया की तो समझ में आ गया था लेकिन अफ़सोस यह है कि तहसील कार्यालय के उस पटवारी को यह बात इतने वर्षों में आज भी समझ नहीं आई थी |
- देवेश दिनवंत पाल |
 

Comments

  1. Good story.
    भाई इस जमाने में बिना रिस्पत के कोई काम हो जाए बहुत बड़ी बात है और ये जो लाइन लिखी होती दीवालों पे इनके विपरीत होता है।

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    1. क्या भाषा है भैया एक दम कमाल धमाल

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    2. लेख को इतनी गहनता से पढ़ने के लिए बहुत शुक्रिया मित्र 😊

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  2. तम्बाकू रगड़ते हुए एकदम मज़ा आ गया भैया

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    1. 😅😅 Bilkul bhaishahab, lekin mazaa to Rajjan bhaiya aur Shambhu ko bhi aaya hoga

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