Manual scavenging (मैला ढोना) Documentary Film by Scoopwoop Unscripted.


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“ हर दलित सफाई कर्मचारी नहीं है लेकिन हर सफाई कर्मचारी दलित है |” इस लाइन को एक बार पढ़ने भर से शायद ही इसका अर्थ समझ आये लेकिन यह बात बहुत ही गहन विषय के बारे में कही गयी है जिसके ऊपर Scoopwoop Unscripted चैनल ने यह डोक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाकर तैयार की है | यह फिल्म हमें समाज के एक ऐसे पहलू से बखूबी रूबरू कराती है जिसके बारे में शायद हमारा समाज सोचना भी मुनासिब नहीं समझता है | आजकल के समाज को एक बहुत ही कृत्रिम कारक प्रभावित करता है जिसका नाम है – “ जाति ” इस कारक को कृत्रिम कहने की मेरी अपनी एक वजह है | लेकिन दूसरे द्रष्टिकोण से देखने पर पता चलता है कि जाति एक ऐसी संज्ञा है जो समाज व्यवस्था में जन्म के आधार पर निश्चित होती है | 
किसी नाले या गटर के आस पास से जब आप अपनी गाड़ी या बाइक से गुज़रते हैं तो आप और आपकी नाक दोनों ही उस जगह की बदबू से परेशान हो जाते हैं और आप नाक को किसी भी चीज़ से ढक लेते हैं लेकिन यह सफाई कर्मी घंटों तक इस्सी नाले में खड़े होकर इसकी सफाई करते रहते हैं | यह फिल्म हमें इस बात से भी परिचित कराती है कि इन सभी दलित सफाई कर्मचारियों के हितों के लिए, न्याय के लिए और समानता के लिए जो भी वादे सरकार करती है उनके पूरे होने की अंतिम तिथि अनंत तक दिखाई ही नहीं देती है | आधुनिक भारत के संविधान में भले ही इन सफाई कर्मचारियों के लिए भले बड़ी बड़ी बातें कही गयी हों लेकिन उनका ज़मीनी स्तर पर होने का कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है |
आजादी के 73 साल बाद आज भी Cast Privillage और Cast Discrimination जैसे शब्द हमारे समाज की नस नस में बसते हैं | यह डोक्यूमेंट्री फ़िल्म हमें ऐसे कई आंकड़ो और तथ्यों के बारे में बताती है जिनके बारे में हम सभी आज तक अनजान हैं | इस डोक्यूमेंट्री फ़िल्म को देखते समय आप हमारे समाज में भीतर और बाहर दोनों जगह हो रही हर तरह की बदबु को महसूस कर पाएंगे | इस डोक्यूमेंट्री के अंत जो बात कही गयी वह वास्तव में इस फिल्म के सार को बयां करती है कि – “ हम अक्सर भूल जाते हैं कि हमारे जीवन की संभावनाओं की सीमा हमारे जन्म लेते ही तय हो जाती है | “

- देवेश दिनवंत पाल।

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