पसंद हैं मुझे वो रास्ते.....



पता नहीं क्यों लेकिन पसंद हैं मुझे ,

वो सभी रास्ते जो निभाते हैं साथ मेरा ,
किसी भी सफलता को प्राप्त करने में |
एक साधारण सी कल्पना जिसे हम बना देते हैं
सफलता का एक जाना - माना प्रतीक चिन्ह
उस चिन्ह और असफलता के बीच
होती है, एक बारीक सी रेखा, जो दर्शाती है
हमारी वास्तविक स्थिति को |
जीवन की कुछ परिस्थितियों में, हो जाता है मुझे,
बेहद लगाव ऐसे ही कुछ रास्तों से |
ऐसा शायद इसलिए होता है क्यूंकि छूट जाते हैं ,
इन्ही रास्तों पर ऐसे कुछ ख़ास निशान,
जो आगे चलकर याद दिलाते हैं हमें हमारी मौजूदगी की |
दरअसल उन रास्तों पर जो निशान हैं,
 उन्हें निशान कहना ठीक नहीं , क्यूंकि
ये वही खूबसूरत क्षण होते हैं जिनको हम
हमेशा अपने ज़हन में जिंदा रखने की
कोशिश करते रहते हैं|
और शायद भूल जाते हैं हम इस बात को ,
कि हमने ये सफ़र शुरू क्यों किया था ?
एक समय पर आकर हम खो देते हैं ,
उस रेखा को पार करने के डर को ,
और उस असफ़लता के अधूरेपन को ,
जो शायद कभी पूरी तरह से
मिला ही ना था |
इन रास्तों के अंतिम छोर पर खड़े होकर ,
मुस्कराते हैं हम, बिना किसी आशा या निराशा के ,
और बहुत पीछे छोड़ आते हैं उस कल्पना को 
जिसका साधारण होना , मेरे जीवन की उन,
 तमाम असाधारण बातों में से एक था |
जब कभी विचार करता हूं उन बातों पर ,
जो शायद बातें थी ही नहीं , 
कि इतना समय गुज़रने के बाद आज भी
पता नहीं क्यों लेकिन पसंद हैं मुझे ,
वो सभी रास्ते जो निभाते हैं साथ मेरा ,
                        - देवेश दिनवंत पाल |
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